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नदी / बालकृष्ण गर्ग
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पर्वत से वह निकाल-निकाल,
बहती रहती सँभल-सँभल।
आखिर सागर से जा मिल,
जीवन करती नदी सफल।
[रचना : 10 मई 1996]