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नदी के नाम / साँवर दइया
Kavita Kosh से
पहाड़ों से
टकराती
बल खाती
इठलाती
चली आ रही नदी
कभी मंद
कभी द्रुत गति से
हर किसी की प्यास बुझाती
मैं भी खड़ा था किनारे
लेकिन
मुझे तो
पानी की एक बूंद
न दी
मैं किस मुँह से कहूँ
तुम नदी हो !