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नदी दर्शन / अम्बिका दत्त
Kavita Kosh से
मैं अब तक रस्सियां पूजता था
दुर्बल रस्सियां
क्योंकि
दुनिया के औजार
पत्थर को तोड़ते-फोड़ते थे
मगर काटते नही थे
काटती थी सिर्फ रस्सियां
धीरे-धीरे घिस कर
और सच ! याद आया
मैंने तब तक नदी देखी नही थी
मैं अब रस्सियों की पूजा नही करता
अब मैंने नदी को देख लिया है
और पहचान लिया है
नदी की पत्थर काटने की ताकत को
बिना घिसे-जमीन के ऊपर बहते रहकर
मैं नदी को अभिवादन करता हूं
प्रणाम करता हूं
नदी की पत्थर काटने की ताकत को
मैं अब रस्सियों की पूजा नही करता
मैंने नदी को देख लिया है।