भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नमक / शंकरानंद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

था तो चुटकी भर ज्यादा
लेकिन पूरे स्वाद पर उसी का असर है
सारी मेहनत पर पानी फिर गया

अब तो जीभ भी इंकार कर रही है
उसे नहीं चाहिए ऐसा स्वाद जो
उसी को गलाने की कोशिश करे

ग़लती नमक की भी नहीं है
उसने तो यही जताया है कि
चुटकी भर नमक क्या कर सकता है ।