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नया वर्ष-2 / अनामिका
Kavita Kosh से
नया वर्ष ! होटल से बस्ती में आया है
बचा हुआ खाना
आज आई है तो कल भी आएगी रसद
जाते-जाते भी रह जाते हैं
जीवन में मीठे मुगालते,
मातमपुर्सी में घर आए
दूर के उन रिश्तेदारों की तरह
कोई बहाना लेकर थोड़ा ठहर ही जाते हैं जो
श्राद्ध के बाद कई हफ़्ते !
अपने घर भले नहीं हो कोई उनका पूछनहार लेकिन
औरों के भारी दिनों में
हफ़्तों तक छितनी में पड़े रहे नीबू-सा
अपना पूरा वजूद ही निचोड़कर
वे वारना चाहते हैं
प्यास से पपड़िआए होंठों पर !