भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नवगीत - 1 / श्रीकृष्ण तिवारी
Kavita Kosh से
क्या हुए वे रेत पर उभरे
नदी के पांव
जिन्हें लेकर लहर आई थी
हमारे गाँव
आइना वह कहाँ जिसमें
हम संवारे रूप
रोशनी के लिए झेलें
अब कहाँ तक धूप
क्या हुई वह
मोरपंखी बादलों की छाँव
फूल पर नाखून के क्यों
उभर आये दाग
बस्तियों में एक जंगल
बो गया क्यों आग
वक्त लेकर जिन्हें आया था
हमारे गाँव