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नाम नहीं / सुनील गंगोपाध्याय

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अरुणोदय-जैसा शब्द मैंने बहुत दिनों से नहीं लिखा
शायद फिर कभी नहीं लिखूंगा
और तभी बादल गड़गड़ाते हैं --
यह क्या सुदूर-गर्जन है या कि मेघमन्द्रर्षोर्षो
शब्दों के अमेय नशे ने जितनी अस्थिरता दी थी
उतना नारी भी नहीं जानती
सिहरन शब्द से जिस तरह बार-बार सिहरन होती है
बिसरा दी गई बाल-स्मृति में से
फिर उठ आती है प्रहेलिका
शाम को चौरास्ते पर अकस्मात
सारे रास्ते गड्ड-मड्ड हो जाते हैं,
कविता लिखने अथवा न लिखने का दु:ख आकर
सीने को दबोच लेता है
दु:ख, या कि दु:ख के जैसा कुछ और
जिसका नाम नहीं है!

मूल बंगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी