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निकला कितना दूर / बुद्धिनाथ मिश्र
Kavita Kosh से
पहले तुम था, आप हुआ फिर
अब हो गया हुजूर।
पीछे-पीछे चलते-चलते
निकला कितना दूर।
कद छोटा है, कुर्सी ऊँची
डैने बडे-बडे
एक महल के लिए न जाने
कितने घर उजडे
वयोवृद्ध भी ’माननीय‘
कहने को हैं मजबूर !
पूछ रहा मुझसे प्रतिक्रिया
अपने भाषण की
जिसको लिखकर पायी मैंने
कीमत राशन की
पाँव नही धरता जमीन पर
इतना हुआ गुरूर !
हर चुनाव के बाद आम
मतदाता गया छला
जिसकी पूँछ उठाकर देखा
मादा ही निकला
चुन जाने के बाद लगा
खट्टा होता अंगूर।