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नियम / अर्चना कुमारी
Kavita Kosh से
नदी जो रेत हुई
उसमें भाषाओं का ज्ञान नहीं था
संवेदनाओं में वर्तनी दोष
और मन की लिपि आदिम युग जैसी
शब्द की शक्ति अनुभव की बात है
भावावेश में टूटता पहाड़
भारी टुकड़ों में नदी पर गिरता
और वहीं भंवर बनाता
आवेग के तीव्र घूर्णनों में
तट विखंडन के बाद
पुनर्निर्माण समय की चाल है
किनारे क्षत-विक्षत
दोषमुक्त करते हैं धारा के वेग को
ध्वंस के दंड से
अनपढ़ नदी
भाव आप्लावन में
व्याकरण के नियम भूल जाती है
पहाड़ से प्रेम उसका
किसी नियम से बंधा तो नहीं।