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निर्गुण / अच्युतदिल दास

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निर्गुणको गुण कैसे बताउ मैं रुप नरेखा ।।ध्रु।।
निर्गुण ब्रह्मा नीदसे नीद रहे कल्प चार ।।
निन्द्र के बीचमे सोप्न भयो ह् अनेक अनेक प्रकारा ।।निर्गुण.।।१।।
निर्गुण ब्रह्मके नीद नजानी स्वप्न भयो सनिसारा ।।
सत्व रज तमो तीन गुणसें चौदै भुवन बिस्तारा ।।निर्गुण.।।२।।
निर्गुण ब्रह्मके स्वासमे नीकले प्रकट भये वेद चारा ।।
सोही वेदसे षट सास्त्र निकले पुराण अठारा ।।निर्गुण.।।३।।
ज्ञान के मूल वेद से भूले पण्डित मुनि विद्वाना ।।
तेतिस्कोटी देवता ध्यान धरतु वितिगये जुग धारा ।।निर्गुण.।।४।।
ब्रह्मा विष्णु महेश्वोर तीनै सृष्टी उपजनिहारा ।।
ब्रह्माजी पारजनी विष्णुजी पालना महेस करे संहारा ।।निर्गुण.।।५।।
चौधै लोकमे विष्णुमाया फैलाया चराचर छाजनी छावनिहारा ।।
छिनकी छिनमें खेल चौरासीमें छिन छिनमे भये संहारा ।।निर्गुण.।।६।।
निर्गुण ब्रह्मा नीदसे जागा भये चौध ब्रह्माण्ड संहारा ।।
दास अच्युत विनये भइ निर्गुणको गुण अपारा ।।
निर्गुणको गुण कैसे बताउ मै रुप न रेखा ।।निर्गुण.।।७।।