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निर्मल रात / उंगारेत्ती
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कैसा गीत जाग उठा है आज
मेरे मन की बिल्लौरी गूँज को
सितारों के साथ
बुन देने के लिए
कैसा उत्सव मना रहा है
आनन्दित मन
मैं जो अन्धेरे का कुण्ड था
अब एक शिशु की भांति
मैं काटता हूँ दिक का स्तनाग्र
छक गया हूँ ब्रह्माण्ड को पी कर ।