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निर्वासन / विवेक निराला
Kavita Kosh से
एक-एक कर
सब कुछ छूटता जाता है
यह देह, यह बोध
यह देहरी, यह क्रोध
यह मित्र, रिश्तेदार
सुत, दारा, घर, संसार।
यह अग्नि, यह जल
यह हमारा आज
यह बीता हुआ कल
यह सागर, यह नाव
यह विचार, यह भाव
यह शस्त्र, यह शास्त्र
यह मन्त्र, ब्रह्मास्त्र
यह शिष्य, यह ज्ञान
यह घृणा, सम्मान।
एक-एक कर
सब कुछ छूटता जाता है
हे ऋषियों!
यह ब्रह्मज्ञान नहीं
यही निर्वासन है।