भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नी कुटीचल मेरा नाँ / बुल्ले शाह
Kavita Kosh से
नी कुटीचल<ref>ढीठ</ref> मेरा नाँ।
मुलाँ मैनूँ सबक पढ़ाया।
अलफों अग्गे कुझ ना आया।
उस दीआँ जुत्तिआँ खाँदी सा।
नी कुटीचल मेरा नाँ।
किवें किवें दो अखिआँ लाइआँ।
रल के सइआँ मारन आइआँ।
नाले मारे बाबल माँ।
नी कुटीचल मेरा नाँ।
साहवरे सानूँ वड़न ना देंदे।
नानक<ref>नाना का गाँव, नगर, घर</ref> दादक<ref>दादा का गाँव, नगर, घर</ref> घरों कढेंदे।
मेरा पेके नहींओं थाँ।
नी कुटीचल मेरा नाँ।
पढ़न सेती सभ मारन आहीं।
बिन पढ़िआँ हुण छडदा नाहीं।
नी मैं मुड़ के कित्त वल्ल जाँ।
नी कुटीचल मेरा नाँ।
बुल्ला सहु की लाई मैनूँ।
मत कुझ लग्गे ओह ही तैनूँ
तद करेंगा तूँ निआँ।
नी कुटीचल मेरा नाँ।
शब्दार्थ
<references/>