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नूंवी हवा (3) / हरीश बी० शर्मा

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नुंवी हवा रा लैरका
सरणाट बेवै है
प्रीत-प्रेम री बातां रो उळझाव
राखणो चावै ई कोनी
एक-दूजै री दोनू
गरज जाणै है
‘गरज मिटी अर गूजरी नटी’
लेणै देणै री लटकाण
एसाण अर ओळभै रो माण
बिरथा भार कुण ढोवै है ?
नूंवै जुग रो सांच,
हवा री सौरम नैं कांई दोस ?