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नूतन सवेरा / राजेश गोयल
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					रूप का सौरभ लुटाता, लग गया साँसों का पहरा।
प्यार  के अब गीत गाता, आ रहा  नूतन  सवेरा॥
रूप का आज सावन,
बरस गया अंग-अंग।
सौंधी सी गंध आयी,
और भायी तन-मन॥
अंग-अंग भाये  तुम,  आ रहा नूतन सवेरा।
प्यार के अब गीत गाता, आ रहा नूतन सवेरा॥
तुम   काली  हो  कजरारी,
कितनी उजली सी जलधार।
तन  मन  में   उनके रहता,
कितना मीठा - मीठा प्यार॥
रात की रानी बनी तुम,  आ  रहा नूतन सेवरा।
प्यार के अब गीत गाता, आ रहा नूतन सवेरा॥
नाम   ना   पूछा  तुम्हारा,
गाँव ना  पूछा  तुम्हारा।
झलक भर आखों  ने देखा,
बस यहीं परिचय तुम्हारा॥
रूप का रस-रंग बरसता, आ रहा नूतन सवेरा।
प्यार के अब गीत गाता, आ  रहा नूतन सवेरा॥
 
	
	

