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नेता / सौरभ
Kavita Kosh से
					
										
					
					करोड़ों की दलाली खा
डकार भी नहीं मारते 
अपनों को फायदा पहुँचा
मन ही मन मुस्काते हैं
दिल है इनके पत्थर के 
घड़ियाली आँसू बहाते हैं
विदेश जाने के ढूँढते बहाने
गुपचुप टैंडर पास करवाते 
भले लोगों को उल्लू बना
करते हैं अपना उल्लू सीधा
टी.वी.पर मुस्काते नज़र आते
किसान करते हैं आत्महत्या 
ये विदेशों से अनाज़ मंगवाते 
खाते हैं गऊओं का चारा
बिजली का बेड़ा गर्क कर
चैन की बँसी हैं बजाते
राम-राम की रट लगा
बगुले भगत बन जाते ।
	
	