भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नैनम् दहति पावक / कविता वाचक्नवी
Kavita Kosh से
नैनम् दहति पावकः
चकमक पाषाण!
अँधेरी रात के उजला माँगने पर
तुम्हारी चिंगारियों से फूटा प्रकाश
मेरे घर कि आग
नहीं हुआ वह,
न मेरा घर था वहाँ
न तुम्हारी आग को बँधना स्वीकार
सार्वजनीन है - आग तुम्हारी
कुछ आते-जातों के लिए।
बचा कर रखना
थोडी़ आग
कि आग देने मुझे
कोई नहीं आएगा जब
तब दे सको
एक चिंगारी - भर
मेरी पिपासा के पुनरागमन के लिए।