भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नोटबंदी-1 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोयल नें
कोयली सें कहलकै
जेकरा घर पड़ेेॅ उपास
ऊ भी/हजार-पाँच सौ के
नोट लैके भंजाय रहल रहै
कभी दूसरा के/कभी अपना खाता में
जमा कैरके होय गेलै मालामाल।