भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

न जाने कहॉं से / संगीता गुप्ता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


न जाने कहाँ से
इन आँखों में
काँटों का जंगल
उग आया था

बन्द न होतीं आँखें
सो न पायी कभी
जब भी झपकी पलकें
चुभ गये ढेरों काँटें
चुपचाप
कौन आया
पलकों पर
और चुन डाले
सारे काँटें ?

अनायास
एक दिन
पलकें झपकीं तो
पीड़ा नहीं हुई
मैं सो गयी