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पंखों वाला घोड़ा (कविता) / राम सेंगर

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लिए फिर रहा कहाँ - कहाँ यह पंखोंवाला घोड़ा ।
काम बहुत करना है, लेकिन, समय बचा है थोड़ा ।

अनुभव की प्रामाणिकता का, क्या सबूत दें उसको,
समय समीक्षक पूछ रहा है, मार - मार कर कोड़ा ।

जोड़ हड्डियों के पूरे खुल गए, किसे बतलाते,
अलग - अलग कोणों से इस गुड़िया को सबने तोड़ा ।

अपने होने की प्रतीति के चिह्न रूप हैं केवल ,
पत्थर पर रख, दबा पाँव से, इतना गया निचोड़ा ।
                           
रचनाकाल : 15 दिसम्बर 1978