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पंवरिया के निमित्त / मुकेश प्रत्यूष

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1.
बजा बधावा हमरे घर हम भए गए नब्बे के

दोस्त-इयार चाहित
भाई को अंग विशेष के दक्षिण से कहां फुर्सत
आप निकालौ समय
कहौ
गुरु बहुत कियो तुम काम

तुम कह दो ढोल बजे-सा
तुम छू दो मंत्र बिंधे-सा

फौज खड़ी की काहे की
दें थापे पर थाप

पंवरिया नाचे द्वारे-द्वार

2.
पंवरिया झूम के काटे मोहरा
तिरकिट धा धिन धिनाक
तिरकिट ता तिन तिनाक
कहै
रंग कहां अभी बदला
कोशिश की पर कहां चढ़ पाए अभी दूजा चकला

बस लबे बाम है दूर
हमरी मिसिल है मशहूर

मौन रहे से रार ठानना
राह चले की शव-साधना

गांठ में क्या है
खेल खुला है

मुक्ति का अभी नाम लिया है
पराधीन सुख नहीं कहा है

आबहु, आबहु, आबहु गोतिया भाई
भाड़ चढ़ा यह चूल्है
उठावा, चला सब भूंजै खाई.

3.
सिंहन के नहीं लेहड़ें
फिर हम कैसे हो जाते

हम सिंगन के सिंग हमारे
भेड़ के देखे कोई

आबत हैं सब द्वार पूजने
चरण गहै हर कोई

जिसके सिर पर हाथ धरुं
नाम छपैंगों सोई.