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पढ़ें-पढ़ाएँ / निशान्त जैन
Kavita Kosh से
आओ मिल सब पढ़ें-पढ़ाएँ,
घर-घर ज्ञान का दीप जलाएँ।
जब से सीखा हमने पढ़ना,
चाहे मन पंछी-सा उड़ना,
बच्चे-बूढ़े सब चिट्ठी से,
मन की बात लिखें-पहुँचाएँ।
अंधकार-अज्ञान मिटेगा,
ज्ञान का सूरज नया खिलेगा,
इसी आस में अरमानों के,
बगिया में हैं फूल खिलाए।
जागे अपने हित की खातिर
जाएँगे दुखड़े सारे फिर,
नाम लिखें सबके सब अपना,
अँगूठा न कोई लगाए।
हो संकल्प हमारा अब से,
प्रेमभाव रखेंगे सबसे,
समझें जिम्मेदारी अपनी,
दूजों को भी संग सिखाएँ।