पतझड़ की औरतें / प्रतिभा किरण
लौटने को हैं वे दिन
जब होंठ सूखकर पपड़ी होंगे
जिसे चाट जाया करेंगी
एक जीभ फिराकर
वे औरतें
बीच से फटे घाव पर
दीया जलाने से पहले
घिस देंगी
मायके में खरीदी लाली
उन्हें कहते सुना था कि
अब आसान हो जाएगा
बिन ऊनी कपड़ों(भार) के
घर लीपना
माहवारी में सूरज निकलने से
पहले मूँड़ मींजना
कम हो जाएगी घर के मर्दों की
चाय की तलब
अब थोड़ी और देर बाद
घर लौटकर दिया करेंगे
अपने मालिकों के साथ
औरतों को गालियाँ
कुछ औरतें जन्म देंगी
इन्हीं दिनों में बच्चा
हँसकर बताती हैं
"अब कथरी-गुथरी से फुरसत"
उनकी माओं ने भी अब तक
काट-कुपट कर जमा कर लिए होंगे
सोंठ के लिए पैसे
दाँत से आँचल के साथ दबाये हुए
अपने सपनों का एक छोर
वे ताकती रहीं हैं दूर तक
पगहा तुराती भैंसें और
पतझड़ का अनन्त विस्तार