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पत्ते पत्ते पर शबनम / सुधेश

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पत्ते पत्ते पर शबनम है
          कली कली की आँखें नम हैं
          क्या कोई खुल कर रोया है रात में ?
भीगी भीगी सुबह सुहानी
पल में शबनम उड़ जाएगी
कलियों के घूँघट में ख़ुश्बू
पवन हिंडोले चढ जाएगी ।
         दिन का नाम दूसरा हलचल
         बहरा कर देगा कोलाहल
         ऐसे में क्या रक्खा है बात में !
बाहर काला धुँआ धुँआ है
कैसी जलन सिन्धु के तल में
सारा दिन तपता रहता है
आग छिपी सूरज के दिल में ।
         घटा घटा छाई मस्ती है
         बिजली भी चम चम हंसती है
          लेकिन क्यों बादल रोया बरसात में?
संझा की आहट पर आख़िर
दिन के यौवन को ढलना है
स्नेह न हो दीपक में फिर भी
जीवन बाती को जलना है ।
          जुगनू राह दिखाने आये
           झिंगुर ने भी गीत सुनाए
           चन्दा ग़ायब तारों की बारात में ।