परिभ्रंश / मोना गुलाटी
मुझे लौट जाना चाहिए चुपचाप
मुझे लौट जाना चाहिए इससे पहले
कि टापों की आवाज़ हवा को विदग्ध करे
कि कोई विजय - यात्रा पर निकल पड़े
कि किसी तरफ़ से भयानक उल्कापात हो
कि ध्वनियाँ निरासक्त खोह की लम्बाई में
परिवर्तित हो जाएँ ।
किसी अन्धे देश
की आत्मा छा जाए मुझ पर
प्रेत बनकर ।
कि गीध के कटे डैनों से गिरने लगे रक्त
काल अन्धड़ में नक्षत्रों को टूटता देखने से पूर्व ही
मुझे लौट जाना चाहिए ।
और होना चाहिए ठण्डे कफ़न की तरह निश्चेष्ट
ताकि तुम्हारे अन्यमनस्क होने में दुविधा का कोई
षड्यन्त्र न हो
कि तुम हो सको वीतराग, तटस्थ और अघोरी । मैंने
तुम्हारे लिए रख दिया है अपना फूटा हुआ कपाल
कि तुम शव - यात्राओं में निर्भय विचर सको
बैताल की भाँति !
मैं लौटा दूँगी तुम्हें
सीने का कटा हुआ घाव ताकि
ख़ैरात पाने में तकलीफ़ न हो ।
मैं अब लौट जाऊँगी
विक्षिप्त अन्धड़ के साथ ।