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परिवर्तन / कविता कानन / रंजना वर्मा

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समय के साथ
परिवर्तित होती सृष्टि
जैसे हों कोमल पत्र
लालिमा लिये
मासूम किसलय.
समय के अनुसार
होते पुष्ट
पीपल पात
आकर बहार
सहलाती गात
उंडेले देती
अपना प्यार
हो जाता
तन मन हरा
सुख से भरा .
समय की करवट
बदल देती तकदीर
पीले पड़ जाते
हरियाये पत्र
फिर पीताभ भूरे
और अंततः
बदल जाते
गहरे भूरे रंग में
सूखे , रस हीन
पराश्रित
हवा के साथ
डोलते हुए
इधर उधर
पा जाते निर्वाण
जीवन की
बदलती हुई तस्वीर
चतुर्युगी के समान...