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परीलोक / शिवराज भारतीय
Kavita Kosh से
आज सुबह मेरे सपने में,
आई एक परियों की रानी।
कोमल-कोमल पंख फैलाकर,
बोली मुझसे मीठी-वाणी।
‘नन्ही गुडिया आज तुम्हें,
परी लोक ले जाऊंगी।
सुनहली पंखों पे बिठाके,
तुझको सैर कराऊंगी।
परीलोक के उपवन में तुम,
जी भर कर खा सकती हो।
चंदा मामा से मीठी,
कर के आ सकती हो।
दूध की नदियाँ घी के झरने,
और दही की झील वहाँ।
रसगुल्लों के पेड़ो पर,
पंछी करते कलगान वहां।
परी रानी की बातें सुनकर,
मैं झटपट तैयार हुई।
नई-नई पोषाक पहनकर,
जाने को तैयार हुई।
मेरे उठने की आहट से,
मम्मी जी भी जाग गई।
मेरी चुटिया थाम के बोली,
सपने में कहां भाग रही ?