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पवन / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
थर–थर कांपता है
फूलों का पेड़
पवन को आते देख
कमजोर बूढ़े बाप की तरह डांटता है
कलियाँ को
क्यों नहीं रहतीं छुपकर
पत्तियों में
बेपरवाह कलियाँ
खिलखिलाती हैं
छिपाती हैं मुँह
पत्तियों की ओट में
करती हैं इंतजार
उचक कर देखती हैं
अभी तक आया नहीं क्यों
पवन।