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पहली मुलाक़ात / पूजा कनुप्रिया
Kavita Kosh से
मन में कितने भाव
शब्द-शब्द बस
बोल देने को आतुर
चेहरे पर अनगिनत मुद्राएँ
बढ़ के बस छू लेने की आकाँक्षा
काँपते लड़खड़ाते से होंठ
इतना यक़ीन कर लेने को
कि हम सामने हैं
एक-दूसरे को देखते रहने के लिए विवश
आँखें हमारी
कितने ख़ामोश दोनों
कुछ बोल न पाएँगे
लेकिन तुम समझ लेना
और
मैं समझ लूँगी
कि
प्यार है
भीड़ में अकेले
दुनियादारी से बेपरवाह हम
सच
कितनी अद्भुत
और
कितनी अनोखी होगी
हमारी पहली मुलाक़ात ।