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पहाड़ / अरविन्द श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
पहाड़ मिट्टी में मिल गया
जैसे हमारा प्रेम
हमारी परंपराएँ
हमारे सपने और दुनिया से
कई-कई प्रजातियाँ तितलियों सी
पहाड़ मिटा जैसे धरती का
निर्भीक डायनाशोर
बड़े सम्मान से
जैसे खत्म हुई बीसवीं सदी
जैसे कई-कई बार राजनीति की भेंट
चढ जाते हैं
प्रतिवादी हौसले
बलिष्ठ भुजाएँ
कोमल काया !