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पाँच हाइकु / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
Kavita Kosh से
(1)
हवा में आई
मीन समझ पाई
पानी का मोल
(2)
हवा ने चूमा
दीप का तन झूमा
काँप उठी लौ
(3)
चंचल नदी
ताकतवर बाँध
गहरी झील
(4)
तुम हो साथ
जीवन है कविता
बच्चे ग़ज़ल
(5)
सूर्य बहका
लुट गईं नदियाँ
पर्वत रोया