भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पांगळो तंत्र / मोनिका गौड़
Kavita Kosh से
खोड़ीजतो चालै तंत्र
बांकै मूंडै सूं निसरै
आधा-अधूरा बेअरथा आखर
सबद सूं बेसी
पड़ै राळ
धूजता हाथ
नीं ठैरै निसाण माथै
माडाणी बैसाखियां सूं
चालण री करै खेचळ
जन री चेतना रै
हुयग्यो लकवो
पांगळो फिरै तंत्र