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पाकिटमार रहल हे / मथुरा प्रसाद 'नवीन'
Kavita Kosh से
अउ देखो भिखारी,
भिखिये मांग के
चला ले हइ
अप्पन परिवार के रेलगाड़ी
एकर तरीका
रोज भोरे होत
बिना नहैने टीका
मोट मोट
कँढ़ैसा नियन काया,
कहने चलऽ हो
भगवान के माया
भोर से दुपहर तक
झोली ओकर भर जा हे,
भोरे-भोरे आदमी के
ठोंठा पर चढ़ जा हे
धरम के नाम पर
लुटेरा के माफ है
जेकरा कुछ ने हे
ऊ तो मरल जीव,
अंधरा अउ कोढ़िया के
रोटी नै नसीब
जेकरा हाथ गोर हे
उहे झार रहल हे
जेकरा जइसे बनऽ हे
पाकिट मार रहल हे।