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पादुका से रह गए / विशाल समर्पित
Kavita Kosh से
पाँव के संग धूल भी अंदर गई
द्वार पर हम पादुका से रह गए
जिसपे हमको गर्व था वह
रेत का घर ढह चुका था
दर्द आँसू जाने क्या क्या
बाढ़ मे सब बह चुका था
कौरवों की सत्यता को जानकर
कर्ण के जैसे रुआसे रह गए
देख व्याकुल आप आकुल
संग हमारे आप रोये
वेदना के शुद्ध मोती
आँख ने उस रात खोये
गोपियाँ अंदर गईं कान्हा से मिलने
राधिका के प्राण प्यासे रह गए
स्वप्न टूटा और टूटा
कल्पना का तंत्र साँचा
हाय उसको कैसे भूला
रात दिन जो मंत्र वाँचा
चाँद अपना देखकर सबने पिया जल
हम उपासे थे उपासे रह गए