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पानी और रेत / अश्वनी शर्मा

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रेत पानी से मिलते ही आर्द्र हो उठती है
तैयार हो जाती है
किसी भी रूप में ढलने के लिये

ताल मिलाती है
नन्हे-नन्हे बच्चों की विचित्र कल्पनाओं से
घर से लेकर आलू की चिप्स तक
कुछ भी बनने के लिये तैयार

अपने नन्हे साथियों के साथ
खुश-खुश खेलती है रेत
झूठ-मूठ कुछ भी बन जाती है
कुछ देर के लिये
जैसे तुतला रही हो मां अपने बच्चों के साथ

कितनी आर्द्र हो ले रेत
सूख जाती है फिर
हो जाती है दर-ब-दर
पगलाई डोलती है

ढूंढती रहती है फिर मिले कहीं
वही आर्द्रता
और नन्हे हाथों का स्पर्श।