पिता को देखते / विनोद विट्ठल
1.
मैं जानता हूँ
ब्रह्मा की रचनात्मकता के ख़त्म होने पर
वे चुपचाप बदल जाएँगे
फूल या तितली में
नए पक्षी की सुरीली आवाज़ में
किसी जँगली ख़ुशबू या आकस्मिक बसन्त में
क्या तब हम तटस्थ भाव से
चिड़ियों की तरह गीत गा सकेंगे
2.
उन्हें फूल पसन्द हैं
फूलों की पसन्द में वे हैं
मैं डरता हूँ किसी एक सुबह से
कि ओस कहाँ गिरेगी
3.
वे प्रायः मुझे एक तोते की तरह लगते हैं
जो हाफुस आमों के साथ महानगर की मण्डी में पहुँच गया है
और बताना चाहता है :
कैसे पकते हैं आम
किस जतन से डाली जाती है मिठास
प्यार और आम में कुछ एक-सा होता है पकने के बाद
4.
मुझे पता है
मेरे जन्मदिन पर वे दिन भर प्रतीक्षा में थे
कि कहे उन्हें कोई : जन्मदिन मुबारक़ हो
उनकी आँखों से मैं तय नहीं कर पाया —
क्या मैं वह रँग बन सका, जिसके लिए वे बदरँग हुए
मैं चाहता हूँ
सन उनहत्तर के उत्तरार्ध से सन सत्तर की सुबह तक
वे क्या सोचते रहे मुझसे कहें
मैं सुनना चाहता हूँ उनकी कोई इच्छा, महत्त्वाकाँक्षा, ज़िद
लेकिन हर बार वे चुप रहते हैं
कभी झरने की तरह अचानक अदृश्य होते
तो कभी चींटियों की कतार में दिखते हुए
मैं उनमें शामिल होना चाहता हूँ
जैसे वे मुझमें हैं
5.
आप सोते हुए दिखते हैं
जैसे टहनियों या छज्जों पर सोते हैं कबूतर
चिड़ियों की जाग की तरह होती है आपकी जाग
गिलहरियों की तरह हलचल
चींटी की तरह भयमुक्त और सक्रियता से जीवन की शुरुआत
दूधिया गाय की तरह
हर शाम आपका लौटना
और रात आसमान में चान्द की जगह टँक जाना किसी कर्तव्य की तरह
कैमरे की तरह आपको देखकर जानना चाहता हूँ
क्या सोचते हैं आप इस जीवन और धरती के बारे में
कभी बताइएगा
जैसे बताते हैं आप मधुबाला के बारे में