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पीढ़ी दर पीढ़ी / रेखा चमोली
Kavita Kosh से
इतने वर्षों के साथ में
कभी ख्याल भी न आया
जब देखी कोई सिकुड़न कहीं
खुल कर बात की सबसे प्रेम से
डरा धमकाकर
सुधारा
जो भी बिगड़ता दिखा आसपास
फिर भी
कहां चूक हो गयी जो
उसका विश्वास डगमगाया
नहीं बुलाया
अपने भाई की शादी में
गुपचुप किया सब
फिर नहीं आया कई दिन स्कूल
इस तरह
एक और पीढ़ी पुख्ता हुई जाति !