भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पीणो सांप / तेजसिंह जोधा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चेतो
चेतोके थांरी छाती माथै
कुंडाळो घाल’र नासां सहारै
फण साध्यां
बैठो है पीणो सांप
पीवै, भासा, भरोसो अर सांस

पोछड़ी
जद ओ
पूछ रो फटकारो देय’र जावैला
तद थांनै देस अर
आजादी रो अरथ समझ में आवैला

हतभाग ! कै मोड़ो व्है जावैला
मोड़ो व्है जावैला !