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पीपल / सरोज परमार
Kavita Kosh से
१.
मैं किसी ढहते क़िले की फ़सील
तुम किसी दरार से
झाँकने की कोशिश में पीपल
तुम्हारी नन्हीं-सी छाया
उम्र गुज़ारने को काफ़ी है.
२.
बिजूका-से खड़े होने पर
कोई तुम्हें पीपल नहीं कहेगा
जंगल का हिस्सा होने हेतु
जंगल की सीरत ज़रूरी है
तुम्हारा पीपल बनना ज़रूरी है.