भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पुकारे तुमको मेरा प्यार / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पुकारे तुमको मेरा प्यार।
चला आ मेरे बिछड़े यार॥

खिला जा मन उपवन के फूल
न जाये बीत बसंत बहार॥

घटाएँ घिरीं गगन के बीच
कभी बरसे मेरे भी द्वार॥

बिछी पलकों की मेरे सेज
जगे कोई सपना सुकुमार॥

छिपे रवि जा बदली की ओट
नहीं अब बरसाये अंगार॥

मिला जिसको अपनों का साथ
उसी का है हर दिन त्यौहार॥

चला आये जो मन का मीत
मिले नव जीवन का उपहार॥