भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पुतरी अतुरीन कहूँ मिलि कै / रहीम
Kavita Kosh से
पुतरी अतुरीन कहूँ मिलि कै लगि लागि गयो कहुँ काहु करैटो।
हिरदै दहिबे सहिबे ही को है, कहिबे को कहा कछु है गहि फेटो॥
सूधै चितै तन हा हा करें हू ’रहीम’ इतो दुख जात क्यों मेटो।
ऐसे कठोर सों औ चितचोर सों कौन सी हाय घरी भई भेंटो॥