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पुनर्दर्शनीय / अज्ञेय
Kavita Kosh से
कब, कहाँ, यह नहीं। जब भी जहाँ भी हो जाए मिलना।
केवल यह : कि जब भी मिलो तब खिलना।
दिल्ली, 6 मार्च, 1954