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पुल पर गाय / अग्निशेखर
Kavita Kosh से
सब तरफ बर्फ़ है ख़ामोश
जले हुए हमारे घरों से ऊँचे हैं
निपत्ते पेड़
एक राह भटकी गाय
पुल से देख रही है
ख़ून की नदी
रंभाकर करती है
आकाश में सुराख़
छींकती है जब भी मेरी माँ
यहाँ विस्थापन में
उसे याद कर रही होती है गाय
इतने बरसो बाद भी नहीं थमी है ख़ून की नदी
उस पार खड़ी है गाय
इस पार है मेरी माँ
और आकाश में
गहराता जा रहा है
सुराख़