भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पेटू जी का गीत / दिविक रमेश
Kavita Kosh से
सोचो पेट बहुत से होते
तो फिर मज़ा न कितना होता
कभी न थकते खाते खाते
भोजन चाहे जितना होता
एक पेट में भरते जाते
ठंडी ठंडी आइसक्रीम जी
और दूसरे में हम भरते
पैप्सी ठंडी और कोक जी
एक पेट में चॉकलेट तो
एक पेट में दूध मलाई
एक पेट में काजू पिस्ते
और एक में नानखताई
डोसा बरगर इडली सांबर
पीज्ज़ा हलवा भी हम खाते
चावल पूरी छोले कुलचे
एक साथ ही चट कर जाते
सोचो पेट बहुत से होते
तो फिर मज़ा न कितना होता
कभी न थकते खाते खाते
भोजन चाहे जितना होता