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पेशेवालियाँ / मानिक बच्छावत

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वे सात युवतियाँ थीं
टैक्सी में भरी हुईं
जैसे मछुआ बाज़ार की फल-मंडी से
कोई लबालब भरकर
फल बेचने के लिए ले जाता है टोकरियाँ

ठीक वैसे ही इन
स्त्री-शरीरों को भरकर
रोज़
चितरंजन एवेन्यू से
बहुत सारी टैक्सियाँ निकलती हैं
अपने दलालों के साथ
जिनका सौदा पहले से
ग्राहकों से तय किया हुआ होता है
और वे
एक-एक कर छोड़ दी जाती हैं
उन्हें पहुँचाने वालों के
हाथ जो उन्हें
पंच सितारा होटलों, गैस्ट हाउसों
रिसॉर्टों और प्राइवेट फ़्लैटों में
जहाँ भूखे लोग पहले से बैठे होते हैं
इन कायाओं का बेसब्री से इन्तज़ार करते
उन्हें नोचने-खाने।

रात भर अपने शरीर का
आनन्द देने के बाद
दलालों का कमीशन चुकाने के बाद
थकी-हारी ये युवतियाँ
निढाल होकर गिर पड़ती हैं
अपनी खोलियों के
मैले बिस्तरों पर
टूटते हुए बदन से
छूटते हुए मेकअप से
उकताई हुईं।

और तब तपेली से
आती है
भात के सीजने धान की
पेट की आग भरने किसी
बेज़ुबान पकवान की तरह
निकलती है गन्ध
कल फिर निकलना है
उन्हें अपने काम पर।