भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पोखरण 1998-4 / लाल्टू
Kavita Kosh से
सुबह की पहली पहली साँस को
नमन करने वालों
आओ मेरे पास आओ
हरी हरी घास और पेड़ों को छूकर चलने वालों
आओ हमें गद्दार घोषित किया गया है
सलीब पर चढ़ने से पहले आओ
उन्हें हम अपनी कविताएँ सुनाएँ.