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पौधे की किलकारियाँ / अर्चना भैंसारे
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सारी रात पिछवाड़े की
ज़मीन कराहती रही
लेती रही करवटें
उसकी चिन्ता में
सोया नहीं घर
होता रहा अंदर-बाहर
और अगले ही दिन
पहले-पहल सूरज की किरणें
दौड़ पड़ी चिड़ियों के सहगान में
जच्चा गातीं
उसकी गोद में मचलते
पौधे की किलकारियाँ सुन...!