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प्यारे फूल / वीरेश्वर सिंह 'विक्रम'

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प्यारे फूल! प्यारे फूल!
कल तो तुम चुनमुनिया-से थे
आज भला कैसे बढ़ आए?
ऐसी महक और रंग तुम
सच-सच कहो, कहाँ से लाए?
अरे, हँसो मत इतना फूल!

अम्माँ हमें फूल-सा कहती
और यही है नाम तुम्हारा!
उसी एक माँ के हम-तुम हैं
फूल हृदय है एक हमारा!
गए हमें तुम कैसे भूल?

घर के बाहर यहाँ अकेले,
क्या करते हो, हमें बताओ
तुम से यहाँ, कौन बोलेगा,
चलो, हमारे संग घर आओ।
घर अपना ही अच्छा फूल!