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प्रणय प्रस्ताव मधुमय / चन्द्रेश शेखर

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यह प्रणय प्रस्ताव मधुमय किस तरह स्वीकार कर लूँ

मै थके हारे पथिक सा तुम विटप की सघन छाया
मै वियोगी मार्ग उन्मुख, तुम जगत की मोह माया
मैं हूँ यायावर मुझे, तज मोह आगे पथ निभाना
औ'तुम्हारे भाग्य में नित नव पथिक का प्रेम पाना
दुखद है पर सत्य यह तुम हो क्षणिक पथसंगिनी बस
जानकर भी मोहवश मै किस तरह यह प्यार कर लूँ

व्यर्थ है वह स्वप्न का संसार जो तुमने गढ़ा है
छद्म है यह भाव जो तुमने अभी मुझमें पढ़ा है
तुम चिराचिर तृप्ति का आभास हो मै चिर तृषा हूँ
तुम बताओ तृप्त हो कर कौन फ़िर आगे बढ़ा है
कामना की पूर्ति तक तो ठीक है पर क्यों भला
मैं किसी अगले श्रमित की श्रान्ति पर अधिकार कर लूँ

हाथ छोड़ो सामने बाहें पसारे पथ खड़ा है
बँध खोलो द्वार पर कर्तव्य लेकर रथ खड़ा है
प्रेम क्या है मत बताओ जानकर मैं क्या करूँगा
किन्तु इतना जानता हूँ लक्ष्य जीवन से बड़ा है
प्रेम है वह कामना सौ जनम तक जो तृप्त न हो
मैं घुमन्तू किस तरह निज कामना विस्तार कर लूँ