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प्रतिदान / नरेन्द्र कुमार
Kavita Kosh से
घोड़े सरपट दौड़ते हैं
और तेज़!
गिरते हैं, उठते हैं
दूसरों को पछाड़
कुछ गंतव्य तक पहुँचते हैं
प्रशिक्षित करके अन्त में
गदहों की सेवा में
लगाए जाते हैं
उनमें से कुछ
उत्तम सेवा की बदौलत
पुरस्कृत होते हैं
उपरान्त !
उनकी मादाएँ
खच्चरों को जन्म देती हैं